विनम्र अभिवादन…… भारताच्या स्वातंत्रलढ्यातील क्रातिकारकांचे मुकुटमणी , स्वातंत्रवीर विनायक दामोदर सावरकर , यांचा आज आत्मार्पण दिन, अर्थातच पुण्यतिथी.
आणि म्हणूनच “ने मजसी ने” ह्या जीव हेलावून टाकणाऱ्या भावनाप्रधान गीताचा हिंदी अनुवाद केलाय.
ले चल मुझको, लौट मातृभूमि पर
जान मचले प्राण मचले रे दरिया……धृ
भारत भू के चरण हो रहे तुमको
कई बार मेने देखा है
तू मुझसे कहे, चल दूर देश हो आके,
सृष्टी की विविधता देखे,
तबही मा का दिल विरह भय से तडपा था,
पर तुमने भी वचन उसे जो दिया था,
के मार्ग मे मै खुद ही से ले जाऊ,
अवलंब विना पुन्हा यहा ले आऊ,
विश्वास किया इन वचनो पे,
जगत अनुभव संग्रह मै लेके,
उद्धार तेरा मा मै करके,
त्वरित लौट आऊ कहके,
छोड उसे दूर निकल मै आया….
जान मचले, प्राण मचले, ऐ रे दरिया…….१
शुक बंदी या मृग जाल समीप हो जैसे
मै जखड गया कुछ ऐसे,
भू विरह अभी और सहू मै कैसे?
दशदिशा तमोमय जैसे
गुण पुष्प भी ये मै यही सोचकर पाऊ,
के मा को मे महकाऊ,
पर व्यर्थ सभी जो मा के काम ना आये,
उद्धार ना जो उसका कर पाए,
वह आम्रवृक्षवत्सलता जो,
नव कुसुम खीले हे ममता जो,
बहु लाल गुलाब हे खिलता जो,
फुलबाग वही ना फिरसे देखने पाया,
जान मचले, प्राण मचले,ए रे दरिया……२
गगन तले इन तारक दल में सारी
मुझको प्यारी तारका भरत भू मेरी
इन महलो से मुझे लगे अति प्यारी
मा की ही झोपडी मेरी
उसके बिना कोई राज्य भी मुझको देगा
उसके वन का वनवास मुझे भायेगा
भूलू उसको ये हो ना कभी पायेगा,
यू उसके बिना तो अब ना जिया जायेगा
तुझको तेरी प्रिय पत्नी जो नदिया
होगी वो जुदा मै कसम हू तुझको लाया,
जान मचले, प्राण मचले, ए रे दरिया……३
ये झाक लिये निर्दय हसता है कैसे?
क्यू वचन तोडता एसे
स्वामिनी जो कहलाये तेरी है
वह आंग्लभूमी भयभीत क्यू हो आई है
मेरी मा को अबल समज है फसाया,
मुझको तू जो दुर देश ले आया
पर आंग्लभूमी-भयभीता है
और अबल न मेरी माता है
अब देख अगस्ती आता है
और तुझको फिर समझाता है,
जो तुझको कभी प्राशन था कर लाया…
जान मचले प्राण मचले, ए रे दरिया…..४
ले चल मुझको, लौट मातृभूमि पर