हरिवंश राय बच्चन यांच्या कवितांचा भावानुवाद

कुण्या करी ही वीणा देऊ?
 
देवांनी होते जिला निर्मिले
झंकारुनी स्वर, तार छेडिले
मानवास या आज कसे मी ह्या वीणेला अता सोववू?
कुण्या करी ही वीणा देऊ?
 
स्वर्ग रमविणे हिने जाणिले
स्वर्ग सुखाचे सूर वाजले
जगात अवघ्या मोद भराया सूर कोणते इथे साठवू?
कुण्या करी ही वीणा देऊ?
 

अभिलाशा ही मनात दाटत

जीवनात हो वीणा झंकृत
ह्रुदय ही हे का निर्ममतेने म्हणत हिला मी अता पेटवू?
कुण्या करी ही वीणा देऊ?
 
मूळ कविता- किस कर मे यह वीणा धर दू?
अनुवाद सौ सुरुचि
 

देवों ने था जिसे बनाया,
देवों ने था जिसे बजाया,
मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?

इसने स्वर्ग रिझाना सीखा,
स्वर्गिक तान सुनाना सीखा,
जगती को खुश करनेवाले स्वर से कैसे इसको भर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?

क्यों बाकी अभिलाषा मन में,
झंकृत हो यह फिर जीवन में?
क्यों न हृदय निर्मम हो कहता अंगारे अब धर इस पर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?